SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७ रखकर भाव निक्षेपा पर प्रेम रखने को बात करना, यह आत्मवंचना के सिवाय और कुछ नहीं है । नियम तो यह है कि जो व्यक्ति प्रत्यक्ष में विद्यमान न हो तो उस व्यक्ति पर शुद्ध भाव पैदा करने के लिये उसको स्थापना को भक्ति को छोड़कर अन्य कोई सरल उपाय नहीं है। बिना स्थापना के अविद्यमान वस्तु के प्रति शुद्ध भाव प्रकट किया ही नहीं जा सकता। चारों निक्षेपों का इस प्रकार परस्पर सम्बन्ध है । एक के बिना दूसरा निक्षेपा रह ही नहीं सकता। स्थापना का अनादर करने वाले से पूछा जाय कि“वर्तमान में जो नोटों का चलन है ऐसे एक हजार रुपये का एक चैक अथवा ड्राफ्ट यदि तुम्हारे पास हो तो उसे तुम हजार रुपये मानते हो या कागज का टुकड़ा । यदि कहोगे कि 'हम तो उसे कागज के टुकड़े के समान मानते हैं तो उसे साधारण कागज के टुकड़े को तरह एक-दो पैसे में या मुफ्त में दूसरे को क्यों नहीं देते ? उसके उत्तर में कहोगे कि, 'ऐसा मूर्ख कौन होगा जो हजार रुपये को एक पैसे में या मुफ्त में दे दें ? तो फिर जरा मन के नेत्र खोलकर मोचना चाहिये कि जैसे एक हजार रुपये की अनुपस्थिति में उतनी रकम का काम एक चैक अथवा ड्राफ्ट से निकाला जा सकता है, वैसे श्री जिनेश्वर देव को अनुपस्थिति में उनको मूर्ति द्वारा भी साक्षात् भगवान् को पूजने का फल अवश्य प्राप्त किया जा सकता है। ३ द्रव्य निक्षेपों ____ जो वस्तु भूतकाल में अथवा भविष्यकाल में कार्य विशेष के कारण रूप में निश्चित हो उस, कारण भूत वस्तु में कार्य का आरोपण करना उसका नाम द्रव्य निक्षेपा है । जैसे मृतः Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003200
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherVimal Prakashan Trust Ahmedabad
Publication Year1981
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy