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नाम के लिए
भी सौदा बना रहा है।
प्रायः देखा गया है, धर्मशाला, अस्पताल, स्कूल, उपाश्रय और मंदिरों का निर्माण करने वाले, परलोक के पुण्य की अपेक्षा इस लोक के यश को ही सर्वस्व मान रहे हैं और उस निर्माण पर अपने नाम का शिलालेख लगाकर अपूर्व आत्म तुष्टि से पुलक उठते हैं, जैसे कोई अनन्त पुण्य का अर्जन कर चुके हों। ___ एक दार्शनिक कहीं घूमता हुआ एक सड़क पर से गुजरा। उसने देखा, सामने एक विशाल मंदिर का निर्माण हो रहा है । दार्शनिक को आश्चर्य हुआ-आज तो मंदिर में जाने वाले घट रहे हैं, अनेक मंदिर सूने पड़े हैं, उनमें जाकर कोई घंटी घडियाल भी नहीं बजाता, वहां नया मंदिर बन रहा है ? वह जिज्ञासा लिए उस मंदिर की ओर बढ़ गया। ___मन्दिर के मुख्य द्वार पर पहुँच कर उसने लोगों से पूछा-यह मन्दिर क्यों बन रहा है ?
लोगों ने दार्शनिक की ओर घूर कर देखा-क्या कोई पागल तो नहीं है ? यह भी कोई प्रश्न है ? मन्दिर तो बन रहा है, भगवान के लिए !
दार्शनिक को सही उत्तर नहीं मिला, वह और भीतर चला गया। एक बूढा कारीगर जो सब की देख रेख कर रहा था, बैठा था। दार्शनिक ने उसके सामने वही प्रश्न दुहराया-मन्दिर क्यों बन रहा है ?
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