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प्रतिध्वनि
बूढ़े कारीगर ने अपने हाथ से हजारों मन्दिरों का निर्माण किया था। वह दार्शनिक की उत्सुकता को समझ रहा था, दार्शनिक का हाथ पकड़ एक ओर ले गया। वहाँ अनेक कारीगर भगवान की मूर्तियाँ तैयार कर रहे थे। दार्शनिक ने सोचा-शायद यही उत्तर मिले, कि भगवान की इन मूर्तियों के लिए वह रुक गया।
कारीगर ने दार्शनिक को संकेत किया, वह और आगे बढ़ा । एक श्वेत शिलापट्ट की ओर संकेत करके कारीगर ने कहा-देखा, क्या हो रहा है ?
दार्शनिक ने गौर से देखा, उस पर निर्माणकर्ता का नाम-परिचय लिखा जा रहा था। कारीगर ने कहा'समझे ! इसीलिए मन्दिरों का निर्माण होता रहा है, और होता रहेगा।'
दार्शनिक की आँखों में संतोष के साथ मानव मन की विडम्बना पर आश्चर्य भी झलक उठा-'मानव ने धर्म और भगवान पर भी अपने नाम की मोहर लगानी शुरू कर दी।
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