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नया आश्चर्य
भगवान महावीर ने एकबार अपने प्रिय शिष्य गणघर गौतम को संबोधित करके कहा-“गौतम ! जैसे घास की नोंक पर हिलती हुई ओस की बूंद सूर्य की रूपहली किरणों के प्रकाश में मोती-सी चमकती हुई प्रतीत होती है, पर वह कितनी देर ! कुछ ही क्षण बाद तो उसे गिर कर मिट्टी में मिल जाना है, बस ऐसा ही है यह मनुष्य का नश्वर जीवन !"* ___ कोई यह सोचे कि-'नाणागमो मच्चमुहस्स अस्थि । मुझे मौत अपने मुंह में पकड़ कर नहीं ले जायेगी, उसका यह भ्रम ऐसा ही है, जैसा दिन का प्रकाश देखकर कोई सोचे कि अब रात नहीं आयेगी ?
यह मानव मन का भ्रम, है सबसे बड़ा अज्ञान है, मोह है, मूढता है, कि वह अपने सामने संसार को मरता हुआ
* उत्तरा १०।१
+ आचारांग १।४।२
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