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________________ कारूं का खजाना भगवान माहवीर का एक बोध वचन है-वित्तण ताणं न लभे पमत्त*-हे प्रमाद में भूले मनुष्यो ! यह धन कभी भी तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकेगा। जिस धन को मनुष्य प्राण से भी अधिक समझ बैठा है, वह प्राण निकलते समय निष्प्राण-सा देखता ही रह जाता है। मनुष्य मरता है, धन उसकी तिजोरी में बन्द पड़ा रहता है, वह एक चरण भी उसके साथ नहीं चलता ! पत्नी घर के दरवाजे तक पहुँचा कर रह जाती है और बाल-बच्चे श्मशान घाट तक ! आगे साथ क्या जाता है ? सिर्फ एक धर्म ! सुकृत ! पुण्य ! । __ जो धर्म को छोड़कर धन जमा करने में रहा-वह मरते समय दरिद्र की तरह घर से निकलता है। शेखसादी ने 'गुलिस्ताँ' में एक जगह लिखा है-'उस शख्स के जनाजे की नमाज मत पढ़ो, जिसने अल्लाह की * उत्तराध्ययन सूत्र ४ । २५ Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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