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प्रतिध्वनि
एक ही रूप के दो स्वरूप हैं। मैं ही तू है, तू ही मैं हूं। अब मैं तुम्हें नहीं पुकारूंगा।'—और दार्शनिक ने अपने अन्तर को निहारा तो वहां परमात्मा खड़ा उसी को पुकार रहा था
ब्रह्म तत् स्वासि*--- "वह ब्रह्म तू ही तो है ! जिसे पुकार रहा है।"
* विवेक चूडामणि २२५
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