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प्रतिध्वनि
इस संसार में सर्वत्र प्रतिदान और प्रतिध्वनि का सिद्धान्त व्याप्त है। प्रेम देने वाले को प्रेम मिलता है, ट्ठप बरसाने वाले को द्वष ! रावण और दुर्योधन ने संसार में युद्ध और घृरणा-द्वेष के बीज डाले तो उन्हें मृत्यु, निंदा और विद्वष के ही फल प्राप्त हुए, जबकि राम और धर्म-पुत्र को प्रेम और श्रद्धा की मालाएँ अर्पित की गई, चंकि उन्होंने प्रेम और स्नेह की फूलों की क्यारियां लगाई थीं !
अथर्ववेद का एक वचन है—यश्चकार स निष्करत(अथर्व २।६।५) जिसने जैसा किया, वैसा ही पाया। इस पर जैसे भाष्य करते हुए तथागत बुद्ध का एक वचन मुझे याद आ गया है।
हन्ता लभति हन्तारं जेतारं लभते जयं-(संयुत्तनिकाय १।३।१५) मारने वाले को मारने वाला और जीतने वाले को जीतने वाला मिल जाता है । वास्तव में
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