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प्रतिध्वनि
पन्द्रह वर्ष तक सारे बौद्ध जगत का तीर्थाटन कर मैंने धर्म के गूढ़ तत्त्वों का रहस्य प्राप्त किया है। मेरी भावना है कि कम्बोज का शासन भगवान तथागत के आदेशों के अनुसार चले, मैं राज्य का धर्म-गुरु बनना चाहता हूँ।'
धर्मज्ञ सम्राट् भिक्ष की कामना जान कर किंचित् मुस्कराये---"आपकी सदिच्छा मंगलमयी है, किन्तु अभी आप धर्मग्रन्थों का एकबार पुनः पारायण कीजिए।"
भिक्ष क का चेहरा क्रोध से लाल पड़ गया। पर क्रोध को भीतर ही दबाए वे वहाँ से लौट आये। सोचा'सम्राट् को रुष्ट करने से क्या लाभ; एक बार सब ग्रन्थों को पुनः पढ़ डालना चाहिए।'
भिक्ष एक वर्ष बाद पुनः सम्राट् की सभा में उपस्थित हुआ और बोला-“मैंने सब ग्रन्थ दुबारा पढ़ डाले हैं, अब राज्य-गुरु का पद मुझे मिलना चाहिए....।"
सम्राट ने पुनः मुस्कराकर कहा-"भदन्त ! एक बार और पढ़ लीजिए।"
भिक्ष क्रोध में तमतमा उठा। यह क्या मजाक कर रहे हैं। पर वह चुपचाप लौटकर नदी के एक शांत तट पर चला गया। अपमान का दंश भीतर में पीडित कर रहा था। उसने शांति के लिए सांध्य प्रार्थना की और ग्रन्थ को लेकर बैठ गया। पढ़ते-पढ़ते उन्हीं ग्रन्थों के शब्द नयी-नयी अर्थ चेतना लेकर उसके अन्तर में जागने लगे, वह उन्हीं के रहस्यों में खो गया।
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