________________
६०
माता की प्रतिकृति
धर्मसूत्रकार मनु ने माता को पृथ्वी की प्रतिमूर्ति माना है
माता पृथिव्या मूर्तिस्तु
मनुस्मृति २।२२६
पृथ्वी - भूमि के रस एवं गंध का मानव शरीर पर सबसे अधिक प्रभाव रहता है, जैसे शरीर निर्माण में भौतिक - पिंड का प्रमुख हाथ होता है, वैसे ही मानव के शरीर एवं मानस की रचना में माता का सबसे मुख्य एवं प्रभावशाली हाथ रहता है । जैनसूत्रों ने इसीलिए माता को'देव - गुरु - जणणी' और 'रयरणकुच्छि' रत्नकुक्षि कहकर संस्तुति की है । इसीलिए तो हजार पिता से बढ़कर एक माता को माना गया है- सहस्रं तु पितृन् माता ।
धर्मशास्त्र, और शरीर विज्ञान इस बारे में एकमत है कि माँ के चरित्र का, उसके मानस गुणों का संतान पर १६७
Jain Education Internationa For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org