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शब्द नहीं, भावना
शब्द मिट्टी का दीया है, भावना उसकी ज्योति है । जो ज्योति की अवगरणना कर 'दीये' को महत्व देता है, वह चेतन्य की अवमानना कर जड़ की पूजा करता है ।
चेतना के क्ष ेत्र में, भावना के जगत में शब्द सिर्फ चोला है, तलवार की म्यान है, वहाँ चोले और म्यान का कोई मूल्य नहीं
मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान !
एक बार राम जब वनवास में घूम रहे थे तो निषादों का राजा 'गुह' उनका भक्त बन गया था । वह न अधिक पढ़ा लिखा था, न वाणी का शिष्टाचार और सुन्दर बाह्याचार का ही उसे ज्ञान था । उसका हृदय सरल, और राम के प्रति अत्यन्त भक्ति परायण था ।
निषादराज कई बार प्रेमातिरेक में राम को 'तू' शब्द
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