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प्रतिध्वनि
हटाने के लिए एक बहुत प्रसिद्ध संत (फकीर) ने एक दिन बादशाह से पूछा-“जहाँपनाह ! यदि कभी आप ऐसे रेगिस्तान में चले जाँय, जहाँ पर मीलो में न कोई आदमी दिखाई दे और न कहीं पानी ! मारे प्यास के प्राण निकलने लगे तब कोई आदमी जिसके पास सिर्फ आधा सेर पानी हो, वह आपसे आधा राज्य लेने की शर्त लगा कर पानी पिलाए तो क्या आप वह शर्त मंजूर कर सकते है ?"
बादशाह ने कहा-"उस समय तो जो वह कहे, करना ही पड़ेगा, प्रागों से बढकर बादशाहत नहीं है !" . .
फकीर ने जरा गंभीरता का आवरण हटा कर कहा"जहाँपनाह ! जो बादशाहत सिर्फ आधा सेर पानी के लिए बिक सकती है, क्या वह कोई अभिमान करने जैसी चीज है ?'' गरीबी और अमीरी में कितना सामान्य अंतर है-सिर्फ एक घंटा की प्यास ! एक गिलास पानी का।
फकीर की बात पर बादशाह को अपनी भूल महसूस हुई और उसका अभिमान काफूर हो गया।
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