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बादशाहत का मूल्य
तथागत बुद्ध जब अंतिम महाप्रयाण कर रहे थे तब उपस्थित जन समूह को अपना दिव्यसंदेश देते हुए एक वचन कहावयधम्मा संखारा अप्पमादेन सप्पादेथा !
-दीघनिकाय. २।३।२३ संसार में जो भी वस्तुएं हैं वे सब क्षणिक हैं, नाशवान् है। अतः उनपर अहंकार एवं आसक्ति न करके अप्रमाद पूर्वक अपना जीवन लक्ष्य साधते रहो।
वास्तव में जो भौतिक वस्तु, वैभव एवं साम्राज्य नाशवान् है, उसका अविनाशी जीवन के लिए क्या मूल्य हो सकता है ? चक्रवर्ती का साम्राज्य भी जब क्षणिक है, तो उसका अहंकार कैसा? और कैसी उस पर आसक्ति ?
कहते हैं, अरब के बादशाह हादर रशीद को अपनी बादशाहत का बहुत अभिमान था। उसका अभिमान
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