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________________ एक दोष ! ११५ कहते हैं एक बार राजा भोज अपने सामंतों एवं सेनापतियों के साथ बैठा था । संगति के कारण राजा का भी आकर्षण 'मद्यपान' की ओर हो रहा था । यह दुर्गुण आता देखकर कालिदास चौंक उठा । उसने राजा को सावधान करने की दृष्टि से एक भिक्षुक का वेष बनाया और फटी-टूटी गुदड़ी शरीर पर डाले राजा की सभा में प्रवेश किया । राजा ने भिक्षुक की सहस्रों छेदवाली कंथा देखी तो कहा - " भिक्षुक ! तुम्हारी यह कंथा तो जीर्ण हो गई हैं, इसमें तो छेद ही छेद हो चुके हैं ।" बहुत भिक्षुक ने हँस कर कहा - "महाराज ! यह कंथा नहीं, मछलियाँ पकड़ने का जाल है ।" राजा ने आश्चर्य के साथ पूछा - "क्या ? तुम मछलियाँ भी पकड़ते हो ?" "हाँ, महाराज ! खाने के लिए! " " तो तुम मछलियाँ खाते भी हो?" 'हाँ, महाराज ! शराब जो पीता हूँ तो माँस भी चाहिए !' भिक्षुक ने सहजभाव से उत्तर दिया । राजा की आँखें फटी-सी रह गई । “क्या तुम शराब भी पीते हो? कैसे भिक्षुक हो तुम?" "महाराज ! वैश्याओं के साथ जो रहता हूँ, वहाँ तो बिना शराब और माँस के आनन्द ही नहीं आता..!" Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003199
Book TitlePratidhwani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1971
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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