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३८ एक दोष !
बुराई एक भी बुरी होती है । छोटे से छोटा दीखने वाला दुगुर्ण भी जीवन को दूषित कर डालता है जैसे छोटी सी चिनगारी लाखों मन रुई के ढेर को भस्म कर डालती है । एक छोटा सा काँटा छह फुट के विशाल शरीर में बेचैनी पैदा कर देता है, एक छोटा सा फोड़ा पूरे शरीर को रोगी बना डालता है, तो फिर एक दोष, एक दुर्गारे जीवन में क्या-क्या नहीं कर डालता होगा ? महान् श्रुतधर आचार्य भद्रबाहु ने कहा हैअणथोवं वणथोवं अग्गिथोवं कसायथोवं च ण हु मे वीससियव्वं थोवं पि ते बहुं होई । -आव० नि० १२० ऋण (कर्ज) व्रण ( घाव ) अग्नि और कषाय - यदि इनका थोड़ा सा भी अंश विद्यमान है तो उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ये अल्प भी समय पर विस्तार पाकर भयंकर बन जाते हैं ।
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