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बोलते चित्र घुमड़ कर घहराने लगी।
कुमारपाल का निश्चय मेरु के समान था। अहिंसा के लिए वह सर्वस्व त्याग ने को प्रस्तुत था। उसे कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र पर पूर्ण विश्वास था कि वे उन्हें सही पथ-प्रदर्शन करेंगे।
आश्विन शुक्ला छठ के दिन पाटण के प्राङ्गण में विराट् सभा का आयोजन था। सभी प्रधान पुरुष उपस्थित हुए। उचित समय पर आचार्य हेमचन्द्र का भी आगमन हुआ। सभी ने उनका हृदय से स्वागत किया। आचार्य देव योग्य आसन पर आरूढ़ हुए। __ आचार्य ने सभा - सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कहा-माता का भोग अवश्य देना चाहिए। बिना भोग दिये काम नहीं चलने का। इस वर्ष पशुओं के साथ मिठाई भी विशेष रूप से चढ़ानी चाहिए। माता को प्रसन्न रखना अत्यन्त आवश्यक है। ___आचार्य देव के भाषण सुनकर मांसभक्षी पुजारियों के हृदय नाचने लगे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अहिंसा के परमोपासक आचार्य देव हिंसा का किस प्रकार समर्थन कर रहे हैं।
कुछ क्षण रुक कर फिर आचार्य देव ने कहा-बलि देनी चाहिए, परन्तु रक्त से सने हाथों से नहीं। जो माताजी को बकरे आदि चढ़ाना चाहते हैं वे जीवित ही चढ़ावें। माता के मन्दिर में सभी को जीवित ही रख
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