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बोलते चित्र बिना परिचय के भी रोकफेलर ने ४५००० डालर का चैक आइन्स्टाइन को भेंट स्वरूप भेजा। साथ ही पत्र में लिखा-'जिनके पैरों के जूते भी मैं उठाने योग्य नहीं हूं उस महान् विभूति आइन्स्टाइन को यह मेरी श्रद्धामय भेंट ।'
आइन्स्टाइन को वह चैक मिला, किन्तु उन्होंने उसे बँटाया नहीं। वे जो पुस्तक पढ़ रहे थे उसमें पन्ने की स्मृति के लिए उसे निशान रूप से लगा दिया। वह चैक एक पुस्तक से दूसरी पुस्तक में लगता रहा । प्रस्तुत प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है कि आइन्स्टाइन कितने निस्पृह थे !
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