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बोध पाठ
सुबह की सुहावनी धूप चारों ओर फैल रही थी। राजमार्ग पर मानवों की भीड़ बढ़ रही थी। एक वृद्ध लकड़ी के सहारे चल रहा था। सामने से जवानी के जोश में चलता युवक आया और वृद्ध से टकरा गया । युवक सशक्त था उसके शरीर की नसों में नया खून दौड़ रहा था । आवेश में आकर उसने उस वृद्ध के गाल पर तमाचा मार दिया।
वृद्ध ने हाथ जोड़कर उस युवक से निवेदन किया, महानुभाव ! आपको ज्ञात होना चाहिए कि मैं अंधा हूं। मुझे दिखाई नहीं देता है । कृपा कर बताइए आपको कहाँ पर चोट लगी है ? मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ।
वृद्ध की मधुर मुस्कान और कथन के अद्भुत और आकर्षक ढंग से युवक पानी-पानी हो गया। वह वृद्ध के चरणों में गिर पड़ा। बोला-क्षमा करें, शान्ति का उपदेश तो मैंने बहुत सुना है पर तुम्हारे जैसा व्यक्ति मैंने नहीं
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