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________________ ५७ राष्ट्र का गौरव क्रप्सकाया और लेनिन बैठे हुए थे। वार्तालाप के प्रसंग में कप्सकाया ने लेनिन के सामने बिस्कुटों में मिलाई गई औषधियों का रहस्य प्रकट कर दिया। क्रूप्सकाया ने सोचा था कि यह बात सुनकर लेनिन प्रसन्न होंगे । पर यह सुनते ही लेनिन के तेजस्वी चेहरे पर क्रोध की रेखाएँ उभर आयीं। वह बिना कुछ कहे उठ खड़े हुए। उन्होंने उसी समय वकील को बुलाया। न्यायालय में कुप्सकाया पर केस दायर किया। राष्ट्रीय सम्पत्ति के दुरुपयोग का अभियोग उस पर लगाया गया । कप्सकाया प्रथम तो उसे मजाक ही समझती रही पर जब उसे सही स्थिति का ज्ञान हुआ तो उसके आश्चर्य का पार न रहा । न्यायालय में केस चला। अन्त में न्यायमूर्ति ने कप्सकाया को अपराधी मानकर तीन मास की सजा सुना दी। कानून की दृष्टि से वह निर्दोष मुक्त नहीं हो सकती थी। लेनिन अपने विचारों पर सुमेरू की तरह दृढ़ थे। न्यायाधीश ने निर्णय के अन्त में अपनी ओर से दो पंक्तियाँ और लिखीं-'इस महान् नारी को हम सजा तो करते हैं, परन्तु लेनिन को बचाकर रशिया की जनता पर इसने महान् उपकार किया है। रशियन प्रजा के कोटि कोटि आशीर्वाद प्राप्त किये हैं। अतः हम इसकी सजा को माफ करते हैं।' लेनिन के चेहरे पर लम्बे समय के पश्चात् पुनः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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