________________
सेवा का आदर्श
५३
आनन्द के साथ बुद्ध रोगी श्रमण के निकट पहुँचे । उन्होंने रुग्ण भिक्षुक के सिर पर हाथ रख कर पूछाश्रमण ! तुझे क्या व्याधि है ? तेरे पास परिचारक क्यों नहीं है ? ___ रुग्ण भिक्ष क ने निवेदन किया- भगवन् ! मेरे पेट में असह्य पीड़ा है, अतिसार की शिकायत है। मैंने आज तक किसी भिक्ष क की सेवा नहीं की तो मेरी सेवा कौन करे ?
बुद्ध ने कहा- आनन्द ! शीघ्र उष्ण जल ले आओ। आनन्द जल ले आया। तब दोनों ने उसके शरीर को स्वच्छ किया । उसे स्वच्छ वस्त्र पहनाए ।
तत्पश्चात् बुद्ध अन्य श्रमणों के पास पहुँचे। पूछाहमारे विहार में कोई श्रमरग व्याधि ग्रस्त तो नहीं है ?
श्रमणों ने कहा- भगवन् ! एक श्रमण रुग्ण है, जिसके पेट में दर्द है।
बुद्ध-तो इस श्रमण की कौन भिक्ष सेवा करता है ?
सभी श्रमण एक दूसरे का मुंह देखने लगे। तभी एक श्रमण ने साहस कर कहा- भगवन् ! उसने आज तक किसी श्रमण की सेवा नहीं की हैं। ऐसी स्थिति में उसकी सेवा कौन करे ?
तथागत ने गंभीर होकर कहा-श्रमणो! तुम्हारी कोई सेवा करता है इसलिए तुम उसकी सेवा करो, यह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org