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सेवा का आदर्श
तथागत बुद्ध और उनके प्रधान शिष्य आनन्द बैठे वार्तालाप कर रहे थे। उसी समय पवन के तीव्र झौंके के साथ विहार में से तीव्र दुर्गन्ध आयी।
बुद्ध ने पूछा- आनन्द, यह दुर्गन्ध कहाँ से आ रही है ।
आनन्द उसी क्षण गया। लौटकर उसने बतायाभगवन् ! एक श्रमण उदर-वेदना से ग्रस्त है। उसे दस्तों की शिकायत है। उसका सम्पूर्ण शरीर विष्टा से लथपथ हो गया है। वस्त्र गन्दे हो गये हैं। मक्खियाँ भिनभिना रहीं है । यह दुर्गन्ध वहीं से आ रही है।
बुद्ध-आनन्द ! क्या उसकी कोई परिचर्या नहीं करता ?
'नहीं भगवन् ! मुझे पहले ज्ञात नहीं था। ज्ञात होता तो परिचारक की व्यवस्था कर देता।' _ 'अच्छा तो आनन्द, हम स्वयं वहाँ चलें ।'
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