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बोलते चित्र
कुणाल के गीतों की पंक्तियां कानों में गिरीं । आवाज परिचित लगी । स्मरण आया कि इस गीत को तो मेरा पुत्र कुणाल गाया करता था। उसी समय सम्राट् ने अनुचर को भेजकर कुणाल और कंचना को बुलवाया । किन्तु उनकी शान्त-सूरत इतनी बदल चुकी कि सम्राट् उनकों सहसा पहचान न सके। मगर वार्तालाप के प्रसंग में सम्राट् ने कुणाल का स्वर पहचान लिया । सम्राट् ने उनसे कहा- सच बताओ कि तुम कौन हो ? मुझे लगता है कि तुम मेरे पुत्र कुणाल हो ।
कुणाल ने कहा - पिताजी ! मैं आपका ही पुत्र हूँ ।
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यह सुनते ही सम्राट् ने कुणाल को अपनी छाती से लगाया । आँखों से आँसू बरसाते हुए कहा- पुत्र ! तुम्हारी यह दशा कैसे हुई ? कुणाल ने सारी घटना बतादी । सम्राट् ने शीघ्र ही पता लगाया कि यह राजाज्ञा किसने दी थी ? ज्ञात हुआ तिष्यरक्षिता ने । सम्राट् ने आदेश दिया कि तिष्यरक्षिता की आँखे निकाल कर उसको जीते जी जमीन में गाड़ दिया जाये ।
कुणाल के आन्तर नेत्र खुले हुए थे उसके मन में माता तिष्यरक्षिता के प्रति तनिक मात्र भी विरोध की भावना नहीं थी । उसने सम्राट् से प्रार्थना की- पिताजी ! माँ से जो भूल हुई है वह अनजान में हुई है । कौन ऐसी माँ होगी जो इस प्रकार व्यवहार करे ! आप उनको क्षमा करदे ।
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