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________________ कुणाल की आंखें कुणाल- नहीं, बिल्कुल नहीं। ये हस्ताक्षर मेरे पिता के ही हैं, यह उन्हीं की आज्ञा है, और इस आज्ञा का पालन शीघ्र होना चाहिए । प्रधान मंत्री इस प्रकार का दुस्साहस करने से घबरा रहा था । कुणाल ने अपने ही हाथों से अपनी आँखें फोड़ लीं और उसी समय राजभवन को छोड़कर प्रस्थित होने लगा। उसने अपनी पत्नी कंचना को समझाया कि तू मेरे साथ न चल, पर वह कहाँ माननेवाली थी। दोनों ने भिक्षुक का वेष धारण किया, और राजभवन को छोड़कर चल दिये । तक्षशिला निवासियों ने उनको अश्र भरी विदाई दी। तक्षशिला के प्रधान मंत्री ने प्रस्तुत घटना की सूचना सन्नाट को दी। पर महारानी तिष्यरक्षिता ने वह पत्र ही बीच में गायब कर दिया । महाराज अशोक को कोई भी सूचना नहीं मिली। तक्षशिला से विदा होकर कुणाल और उसकी पत्नी दोनों ही गाँवों व नगरों में घूमने लगे। दोनों गायन कला में प्रवीण थे । स्वर दोनों का अत्यन्त मधुर था। जब वे गाने लगते, तब सैकड़ों आदमी उनके आस पास खड़े हो जाते । उन्हें खाने पीने की वस्तु सहज ही मिल जाती। एक दिन घूमते-घामते वे पाटलिपुत्र पहुँचे । राजमहल के पास वे ठहर गये । सुबह का सुहावना समय था । कुणाल ने वही अपना पुराना राग छेड़ दिया जो उसे बहुत ही प्रिय था। सम्राट अशोक की ज्यों ही नींद खुली त्यों ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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