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बोलते चित्र
कुछ दिनों के पश्चात् सम्राट अशोक बीमार हो गए। अनेक उपचार किए गए पर उनकी व्याधि नहीं मिटी । अन्त में तिष्यरक्षिता ने अपने बुद्धि कौशल से महाराजा की चिकित्सा की। सम्राट् पूर्ण स्वस्थ होगए। रुग्ण अवस्था में तिष्यरक्षिता ने सम्राट की अत्यधिक सेवा की जिसके कारण सम्नाट की वह कृपा पात्री बन गई। कोई भी कार्य सम्राट् उससे बिना पूछे नहीं करने लगे।
एक दिन समय पाकर तिष्यरक्षिता ने सम्राट् से राजमुद्रा ले ली और पूर्व लिखे हुए आज्ञा पत्र पर धोखे से उनके हस्ताक्षर करवा लिए। उस आज्ञा पत्र में लिखा था-कुणाल की आँखें निकाल दी जाय और साथ ही उसको राज्य से निष्कासित कर दिया जाय। आज्ञा-पत्र तक्षशिला के प्रधान मन्त्री के नाम पर था। ___ जब वह पत्र तक्षशिला के प्रधान मन्त्री को मिला तो उसे पढ़कर दंग रह गया । उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि सम्राट अपने प्रिय-पुत्र को इस प्रकार कठोर दण्ड दे सकते हैं। पर पत्र पर राजमुद्रा आदि होने से शंका को अवकाश ही नहीं था। प्रधानमंत्री ने सकुचाते हुए वह पत्र कुणाल के हाथ में दिया। कुणाल-पितृ-भक्त पुत्र था। पिता की आज्ञा का उल्लंघन वह नहीं कर सकता था। उसने उसी समय प्रधानमंत्री को कहा-आप इसी समय राजाज्ञा का पालन करें।
प्रधानमंत्री ने गहराई से सोचकर कहा- यह राजाज्ञा कदापि नहीं हो सकती। इसमें किसी प्रकार का धोखा है।
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