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सहयोग ही जीवन है
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नहीं रह सकते । संन्यासी ने उस व्यक्ति को अन्दर लिया और स्वयं झोंपड़ी के बाहर खड़ा हो गया । वह रात भर सर्दी में खड़ा रहा, पर दूसरे के कष्ट निवारण में अद्भुत आनन्द का अनुभव उसे हो रहा था ।
सहयोग मानव का कर्तव्य है । प्रायः मानव दूसरों से सहयोग तो चाहता है पर दूसरों के लिए उत्सर्ग करना नहीं चाहता । उसे सदा स्मरण रखना चाहिए कि मानवसमाज की नींव पारस्परिक सहयोग ही है ।
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