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बोलते चित्र
संन्यासी ने आत्मीयता व्यक्त करते हुए कहा - चिन्ता मत करो । यह कुटिया तुम्हारी ही है, अन्दर आजाओ । इस कुटिया में एक आदमी लेट सकता है, दो आदमी अच्छी तरह से बैठ सकते है, आओ, हम दोनों सुख पूर्वक बैठेगे |
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साधु ने बड़े प्रेम से उसको अन्दर लिया । * द्वार बन्द कर दोनों आराम से बैठ गये । कुछ समय व्यतीत होने पर फिर दरवाजे पर थपकियाँ लगीं । सन्यासी ने द्वार खोला । पूर्व की तरह ही भीगता हुआ आदमी काँप रहा था । उसने भी रात्रि विश्राम के लिए निवेदन किया ।
संन्यासी ने कहा - प्रसन्नता से अन्दर आजाओ, इसमें अहसान की कोई बात नहीं है । संकट के समय किसी का भी सहयोग करना मानव का कर्तव्य है । इस कुटिया में एक आदमी लेट सकता है, दो आदमी बैठ सकते हैं, तीन आदमी खड़े रह सकते हैं । तीन आदमी का एक साथ रहना बड़ा सौभाग्य है । आओ अन्दर हम तीनों खड़े रहेंगे। तीनों अन्दर खड़े हो गये ।
कुछ समय पश्चात् फिर द्वार को खटखटाने की आवाज आयी । संन्यासी ने द्वार खोलकर देखा कि एक व्यक्ति पूर्ववत् ही द्वार पर खड़ा ठिठुर रहा है । संन्यासी ने कहा – तुम अन्दर आकर खड़े रहो। मैं बाहर खड़ा रहूँगा । तुम बहुत देर से ठिठुरते रहे हो, अब मैं ठिठुरन का अनुभव करूँगा । अन्दर तीन से अधिक मनुष्य खड़े
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