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________________ सहयोग ही जीवन हैं भयानक जंगल में एक झौंपड़ी थी उसमें एक संन्यासी रहता था, जो स्वभाव से बड़ा फक्कड़ था। जो भी मिल जाता उसी में सन्तोष कर लेता था। एकबार रात्रि में बहुत जोर की वर्षा हुई । वह झौंपड़ी का दरवाजा बन्द कर सो रहा था। अचानक किसी ने द्वार खटखटाया । संन्यासी ने सोचा-इस समय कौन आया है, कहीं कोई जंगली जानवर तो नहीं है, ऐसे तूफान और मूसलाधार वर्षा में इस जंगल में कौन आ सकता है, वह उठा और दरवाजा खोलकर देखा-सामने एक मानव है। वर्षा से उसके कपड़े तरबतर हो रहे थे। ठण्डी हवा का मारा काँप रहा था। संन्यासी को देखते ही उसने कहामहाराज ! मैं रास्ता भूलकर इधर आगया हूँ ! वर्षा से बचने के लिए आसपास में कोई स्थान नहीं है। विश्राम के लिए ठौर मिल जाय तो जीवन भर उपकार मानगा । सूर्योदय होने पर चला जाऊँगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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