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गंदगी मिटाना
बात उस युग की है जिस युग में तक्षशिला शिक्षा के केन्द्र के रूप में विश्व विश्रुत थी । चार विद्यार्थियों ने अध्ययन पूर्ण किया। वे आचार्य देव का आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचे । आचार्य देव ने कहा
शिष्यो ! जहाँ कहीं गंदगी देखो उसे मिटाते रहना । किञ्चित् मात्र भी उपेक्षा न करना । यही मेरी अन्तिम शिक्षा है। इसे कभी विस्मृत न करना ।
विद्यार्थियों ने आचार्य के चरणों में नमस्कार किया, और वे अपनी जन्मभूमि की ओर चलने के लिए आश्रम से बाहर निकले । उन्होंने देखा आश्रम के द्वार पर एक कुष्ठ रोगी बैठा हुआ है । उसके शरीर पर मक्खियाँ भिनभिना रही थीं, मवाद निकल रहा था ।
एक स्नातक ने उसे देखा । घृणा से उसने दूसरी दिशा में मुँह ही नहीं फेरा किन्तु उसके शरीर पर थूक भी दिया । और आगे बढ़ गया ।
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