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बोलते चित्र
बुढ़िया जब जाने लगी तब तैमूरलंग ने उसे अपने पास बिठाया और पूछा-तुम्हारा नाम क्या है ?
बुढ़िया-दौलत !
दौलत नाम सुनकर बादशाह को हँसी आ गई । उसने परिहास पूर्वक पूछा-तुम तो अंधी हो, क्या दौलत भी अंधी होती है।
क्यों नहीं जहाँपनाह ! दौलत तो हमेशा से अंधी ही है । अंधी होने के कारण ही तो वह लंगड़े आदमी के पास गई है । अंधी बुढ़िया ने परिहास का उत्तर परिहास में दिया।
बादशाह तैमूरलंग बुढ़िया के इस व्यंग भरे उत्तर को सुनकर अप्रसन्न न हुआ। उसने बुढ़िया की हाजिर जबाबी पर खुश होकर दस हजार का पुरस्कार प्रदान किया।
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