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पंच
कलकत्ता के सेठ लक्ष्मीनारायण जी मुरोदिया बहुत सज्जन व्यक्ति थे । व्यापार के क्षेत्र में प्रामाणिकता की ऐसी गहरी छाप उन्होंने डाली थी कि आबाल वृद्ध सभी उन पर पूर्ण विश्वास करते थे ।
वे ऐसे बुद्धिमान् थे कि किसी परिवार में जब कभी कुछ वैमनस्य हो जाता तो शीघ्र ही अपनी बुद्धि पटुता से उसे सुलझा देते थे ।
एक बार दो भाइयों में एक अंगूठी को लेकर संघर्ष हो गया । उन्होंने उस संघर्ष को मिटाने के लिए लक्ष्मीनारायण जी को पंच नियुक्त किया । लक्ष्मीनारायणजी ने कहा- एक भाई अंगूठी ले लो और दूसरा उस अंगूठी की जितनी कीमत हो वह ले ले । पर दोनों भाईयों में से कोई भी इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था - दोनों अंगूठी ही लेने पर तुले थे । तब लक्ष्मीनारायण जी ने कहा- आप दोनों शान्ति
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