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पराई वस्तु उसने कहा-नाथ ! आज अपना श्रम बच गया है। ये देखो भारियाँ तैयार हैं।
भक्त रांका ने सुना, उसके मन को आघात लगा। उसने कहा-भारियाँ भले ही तैयार हों, पर ये हमारी नहीं हम इन्हें कैसे छू सकते हैं ? हमें परिश्रम से बचने में नहीं, किन्तु परिश्रम करने में आनन्द अनुभव करना चाहिए ।
उस दिन वे जंगल में इधर उधर खूब घूमे किन्तु भाग्य योग से कहीं पर सूखी लकड़ियाँ नहीं मिलीं। सायंकाल दोनों को खाली हाथ घर लौटना पड़ा और दूसरे दिन उपवास करना पड़ा।
रांका ने कहा-देखा न ! पराई वस्तु पर जरासी नजर बिगाड़ी कि उसका फल तत्काल मिल गया । यदि उन लकड़ियों का उपयोग कर लेते तो न जाने कितना कष्ट भोगना पड़ता।
बांका को अपनी भूल प्रतीत हुई। भविष्य में किसी की भी वस्तु को नहीं छूने की उसने प्रतिज्ञा ग्रहण की।
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