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जीवन का महत्त्व
महर्षि रमरण - आप अभी मृत्यु को वरण करने की बात कर रहे थे न ? मानव को यह अनमोल जीवन राह चलते सहसा उपलब्ध नहीं हुआ है । भारत के तत्त्वदर्शियों ने बताया है कि जब आत्मा अनन्त पुण्य का पुञ्ज एकत्र करता है तब मानव शरीर मिलता है । इस शरीर का सदुपयोग न करके इसे यों ही गंवा देना क्या बुद्धिमत्ता है ? सुख और दुःख तो धूप और छाया की तरह जीवन में आते रहते हैं। उनसे घबराना उचित नहीं है । कष्ट जीवन रूपी सुवर्ण को निखारने के लिए आता है । कष्ट जीवन का अभिशाप नहीं, वरदान है । इन पत्तलों से तो जीवन का अधिक मूल्य है ।
युवक - महर्षि के चरणों में गिर पड़ा - 'गुरुदेव ! आपने मुझे सही मार्ग दर्शन दिया है ।'
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