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________________ बोलते चित्र रमण ने कहा- क्या तुम मेरा एक कार्य करोगे ? युवक ने कहा- कहिए ! क्या आज्ञा है ? महर्षि रमण ने कहा- देखो ! मैंने जो ये पत्तलें बनाई हैं इन सभी को इकट्ठी कर कचरे में डाल आओ-फिर अपन दोनों शान्ति से बैठकर बात करेंगे । २० युवक ने कहा- महात्मन् ! ये पत्तलें आपने कितने श्रम से बनाई हैं ? इतने अच्छे पत्तल क्या कचरा में डालने के लिए हैं ? आप आज्ञा देवें तो मैं व्यवस्थित कर इन्हें भोजनालय में रखदूं । महर्षि- इन्हें आप कचरा में डाल देंगे तो विशेष नुक्सान नहीं होगा । युवक- नुक्सान की तो कोई बात नहीं, किन्तु इनको बनाने के लिए आपको जंगल में से खाखरा के पत्र इकट्ठे करने होते हैं, नीम की सलियाँ इधर उधर से एकत्रित करनी होती हैं । पत्रों को व्यवस्थित करना होता है । इसमें कितना श्रम होता है, यह तो वही जान सकता है जो कार्य करता है । इसलिए इन पर जब तक भोजन न करें तब तक यों ही कचरापट्टी में फेंक देना उचित नहीं है । महर्षि रमरण - आप तो बड़े समझदार हैं, फिर मुझे समझ में नहीं आया कि आप स्वयं भयंकर भूल क्यों करने जा रहे हैं ? युवक - कौन सी भूल ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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