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जीवन का महत्त्व
महर्षि रमरण अपने हाथ से पत्तलें बनाने का कार्य कर रहे थे । उस समय एक युवक ने आकर उनके चरणों में नमस्कार किया । महर्षि ने युवक के चेहरे को गहराई से देखा । उस पर प्रसन्नता की नहीं, विषाद की रेखायें उभर रही थीं । महर्षि ने अपनी वाणी में स्नेहसुधा घोलते हुये कहा - तुम्हारा चेहरा उदास क्यों है ?
युवक पहले तो बात टालता रहा पर अन्त में महर्षि के आग्रह से उसने बताया - वह अध्यापक है । आमदनी कम और खर्चा अधिक है - कुछ कर्जा भी होगया है । घर में जाता हूँ तो पत्नी परेशान करती है कि अमुक वस्तु की आवश्यकता है। बाजार में जाता हूँ तो मांगने वाले रुपयों की मांग करते हैं । मैं घबरा गया हूँ । घर से यह निश्चय करके निकला हूँ कि पहले महर्षि के दर्शन करूंगा और फिर किसी कुए में गिर कर अपने जीवन को समाप्त कर दूंगा ।
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