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________________ बोलते चित्र होता तो उसे प्रिन्सिपल के कथन से सन्तोष हो जाता । किन्तु अश्विनीकुमार के मन का समाधान नहीं हुआ । वह सोचने लगा-मुझे पाप का प्रायश्चित्त करना ही चाहिए। अपराध किया है तो उसकी सजा भोगनी ही चाहिए। यदि किसी ने चोरी की है, चोरी को उसने स्वीकार कर लिया है किन्तु चोरी का माल यदि अपने पास ही रखा, तो वस्तु का मालिक भले ही उस अपराध को क्षमा कर दे किन्तु क्या इतने मात्र से ही चोर अपराध से मुक्त हो गया ? ऐसा नहीं हो सकता । क्षमा माँगने के साथ ही चक्रवृद्धि ब्याज के साथ पुनः माल को लौटाया जाय तभी पाप से मुक्ति हो सकती है। उन्होंने मन में पूर्ण निश्चय किया कि दो वर्ष तक वे कालेज का अध्ययन नहीं करेंगे ! उसके पश्चात् ही वे अगला अध्ययन करेंगे । उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वैसा ही किया ! तभी जाकर उन्हें शान्ति हुई । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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