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________________ सत्यनिष्ठा अश्विनीकुमार के पिता ने एक अनुभवी अध्यापक से परामर्श किया। अध्यापक ने बताया-आप प्रवेश-पत्र में चौदह वर्ष की उम्र के स्थान पर सोलह वर्ष की उम्र लिख दें। कोई भी अधिकारी इतनी गहराई से अन्वेषण करने वाला नहीं है । कदाचित् कुछ गड़बड़ हो गयी तो मैं अगला मार्ग निकाल दूगा । ___अश्विनीकुमार ने स्पष्ट इन्कार किया कि हमें असत्य का आचरण नहीं करना चाहिए, किन्तु माता-पिता के आदेश से उन्हें वह बात माननी पड़ी। फिर भी उनका मन गवाही नहीं दे रहा था। बिना किसी विघ्न-बाधा के वे कालेज में भर्ती हो गये किन्तु उनके मन में सन्तोष नहीं था। रह-रह कर असत्य का तीक्ष्ण काँटा उनके मन में खटक रहा था। कालेज का समय पूर्ण होने पर वे सीधे प्रिंसिपल के पास गये और अथ से लेकर इति तक तक सम्पूर्ण वृत्तान्त निवेदन किया ! प्रिंसिपल ने गहराई से विचार कर कहा-यह सत्य है कि नियम को भंग कर तुमने अपराध किया है किन्तु तुमने मेरे समक्ष बिना किसी की प्रेरणा के अपराध को स्वीकार किया । पश्चात्ताप पाप-प्रक्षालन की श्रेष्ठ औषध है । मैं तुम्हारी सत्यनिष्ठा को देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हें दण्ड मुक्त करता हूं। अश्विनीकुमार के स्थान पर दूसरा कोई विद्यार्थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003198
Book TitleBolte Chitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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