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सत्यनिष्ठा बंगाल के प्रसिद्ध विचारक अश्विनीकुमार दत्त के बाल्यजीवन का एक प्रेरक प्रसंग है।
बाल्यकाल में ही अश्विनीकुमार की बुद्धि बहुत तीक्ष्ण थी। वे सहज रूप में कठिन से कठिन विषय को याद कर लेते थे। अध्यापक उनकी कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित थे। उनके पिता ने अध्यापक से कहा-प्रतिवर्ष दो कक्षाएँ उत्तीर्ण कराई जाएँ तो कैसा रहेगा। __ अध्यापक ने स्वीकृति प्रदान की। परिणाम स्वरूप दो वर्ष में उन्होंने चार कक्षाएँ उत्तीर्ण की। फिर माध्यमिक शिक्षण प्रारम्भ हुआ। जब वे एस. एस. सी. तक पहुंचे तब उनकी उम्र केवल चौदह वर्ष की थी।
उस समय बंगाल में यह नियम था कि कम से कम सोलह वर्ष की उम्र के बिना कोई भी छात्र मैट्रिक में नहीं बैठ सकता।
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