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परतन्त्र नहीं रह सकता ईश्वी सन् १८५८ में स्वातंत्र्य संग्राम की चिनगारियां यत्र-तत्र उछलने लगीं । भारत के वीर भारत माता को स्वतंत्र करने के लिए जूझने लगे। हंसते और मुस्कराते हुए प्रारण समर्पित करने लगे। उन्होंने विदेशी ध्वज के स्थान पर राष्ट्र ध्वज फहराया।
राष्ट्र ध्वज के गौरव की रक्षा के लिए देश के नौजवानों को कितना बलिदान देना पड़ा हैं, यह एक छोटे से प्रसंग से जाना जा सकता है।
कानपुर और लखनऊ के पास मानगंज एक नन्हा सा कस्बा है । वहाँ के युवकों ने विदेशी ध्वज के स्थान पर राष्ट्र ध्वज फहरा दिया। उन्होंने कहा-जान भले ही चली जाये, किन्तु शान नहीं जाने देंगे। ___अंग्रेजी शासकों को जब यह समाचार मिला तो उनके क्रोध का पार न रहा । इधर राष्ट्रध्वज फहरा
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