________________
साधना
पर्युषण का पावन पर्व था। मुनिगण उग्र तपः-साधना कर रहे थे, किसी के आठ दिन, किसी के दस दिन और किसी के एक महीने का उपवास था। कुरगडु मुनि की हार्दिक इच्छा तप करने की थी पर क्षुधा वेदनीय के अत्यधिक सताने के कारण वह तप नहीं कर सकता था। संवत्सरी जैसे महान् पर्व के दिन भी वह भूखा नहीं रह सकता था । वह कहीं से रूखा भात लेकर आया । उसने उन दीर्घतपस्वी मुनियों के सामने 'साहु हुज्जामि तारिओ' के रूप में अभ्यर्थना की कि आप मुझे तारें अर्थात् इसे ग्रहण करें।
तपस्वी मुनियों ने पात्र में भात देखा। उनका हृदय ग्लानि से भर गया। उनके मन में विचार आयाकितना कायर है यह-जो संवत्सरी पर्व के दिन भी आहार करने के लिए छटपटा रहा है। घृणा से उन तपस्वियों ने उसके पात्र में यूंक दिया। लाल नेत्र कर उसे फट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org