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बोलते चित्र
बाहर हो गया । महावीर पर ढेलों, पत्थरों और रस्सी आदि से प्रहार करने लगा। उसी समय शक्रेन्द्र वहाँ आये । उन्होंने भगवान् से नम्र निवेदन किया-प्रभो ! साधनाकाल में आपको महान् कष्ट आने वाले हैं । अनुमति दीजिए प्रभो ! मैं सेवा में रहकर आपके संकटों का निवारण करता रहूँ ।
महावीर ने कहा- देवेन्द्र ! कोई भी तीर्थङ्कर दूसरों के सहारे केवल ज्ञान प्राप्त नहीं करता । जो दूसरों के सहारे सफलता चाहता है वह कायर है, वीर नहीं । वीर वह है जो निज के पुरुषार्थ से सिद्धि प्राप्त करता है।
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