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उस सज्जन के चेहरे पर क्रोध की रेखायें चमक उठीं, उसकी आँखें लाल हो गई, बोला-क्या आप मुझे इतना नीच समझते हैं जो मैं अपनी महान् उपकार करने वाली माँ का सिर काटकर लाऊँ ?
रवि बाबू ने धीरे से कहा-आप स्वयं नहीं काट सकते तो दूसरे को काटकर लाने की आज्ञा तो दे ही सकते हैं ?
आज्ञा की तो बात दूर रही यदि मुझे यह मालूम हो जाये तो उस दुष्ट का ही सिर काट लूगा।
रवीन्द्रनाथ ने कहा-अच्छा तो देखिए गांधीजी और उनके साथी भी अपनी माँ पर इसी प्रकार की निष्ठा रखते हैं। अन्तर केवल यही है कि आपकी माँ केवल आपकी ही माँ है जब कि उनकी माँ भारत के करोड़ों निवासियों की माँ है जिसका अधिक महत्व
उस सज्जन के पास इसका कोई उत्तर नहीं था। शर्म से नीचा सिर किये धीरे से वहाँ से चल दिये।
करोड़ों की मां
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