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करोड़ों की माँ
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महात्मा गान्धी का नमक सत्याग्रह बहुत ही जोरों से चल रहा था। स्थान-स्थान से लोग जेलों में जा रहे थे। वेदान्तियों का एक शिष्टमण्डल रवीन्द्रनाथ टैगोर से मिलने के लिए पहँचा। वार्तालाप के प्रसंग में एक सज्जन ने कहा--गुरुदेव ! देखिये कितनी अन्धश्रद्धा चल रही है ? देशभक्ति का विचार कितना तुच्छ है ? यहाँ पर कौन अपना है और कौन पराया है ? यह तो सभी माया है। यह भूमि तो जड़ है फिर इस जड़ से इतना मोह क्यों ?
रवि बाबू ने बहुत ही गम्भीर स्वर में उन सज्जन से पूछा-क्या आपकी माता जीवित है ?
हाँ गुरुदेव ! जोवित है। क्या आप माँ का सिर काटकर ला सकते हैं ?
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