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:४५: भाई की चोट
एक सुनार की दुकान के पास ही एक लुहार की भी दुकान थी। सुनार जब कार्य करता तो उसकी बहुत ही धीमी आवाज होती थी किन्तु जब लुहार कार्य प्रारम्भ करता तो उसकी भयंकर आवाज से दूकाने ही काँप उठती। । एक दिन एक स्वर्ण-कण लुहार की दुकान में जाकर गिर पड़ा। उसने लोहे के कण से कहा-भाई ! हम दोनों एक ही तरह के दुःखी हैं। मुझे भी आग में तपना पड़ता है और तुम्हें भी। मुझे भी हथौड़े की चोट सहन करनी पड़ती है और तुम्हें भी। किन्तु मैं चोट को कितनी शान्ति से सहन करता है और तुम कितना हो-हल्ला करते हो।
लोहे के कण ने कहा- तुम्हारा कहना सत्य है किन्तु तुम्हारे पर जो हथौड़ा चोट करता है वह तुम्हारा सगा भाई नहीं है पर वह मेरा सगा भाई है। सगे भाई के द्वारा की गई चोट की पीड़ा बहुत ही असह्य होती है, जिसका तुम्हें अनुभव नहीं है।
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