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तथागत ने उसे सहर्ष अनुमति देते हुए कहा- तुम आनन्द के साथ वहाँ वर्षावास कर सकते हो। भिक्ष हो, फिर वेश्या से डरने की क्या आवश्यकता है ?
भिक्षु वर्षावास हेतु वेश्या के भव्य आवास में पहेचा। वेश्या भिक्षु को देखकर आह्लादित थी। वह प्रतिदिन सरस भोजन भिक्षु को देती। भिक्षु उसे ग्रहण कर लेता। वह भिक्षु के सामने नृत्य करती, गायन गाती, अर्धनग्न बनकर हावभाव और कटाक्ष कर भिक्षु के दिल को लुभाने का प्रयत्न करती। किन्तु भिक्षु न उसके प्रति रस लेता और न नीरसता ही प्रकट करता। वह तो सदा समभाव में स्थिर रहता।
वर्षावास के दो महीने व्यतीत हो गये। वेश्या भिक्षु के चरणों में गिर पड़ी--तुम हाँ, ना, भला या बुरा, कुछ भी तो कहो न ! किन्तु तुम्हारी मौन साधना और तटस्थवृत्ति से मैं कुछ भी निर्णय नहीं ले पाती।
वेश्या के निवेदन का भी उस पर कोई असर न हुआ। वेश्या भिक्षु के अपूर्व त्याग और संयम को देखकर गदगद हो गयी। उसकी वासना कपूर की तरह उड़ गयी और उसने बौद्धधर्म में दीक्षा ग्रहण कर एक आदर्श उपस्थित किया।
बोलती तसवीरें
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