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: १६: उधार
एक फेरीवाला मुहल्ले में घूमता हुआ गन्ना बेच रहा था। उसने एक सज्जन से कहा-गन्ना लीजिये, ये गन्ने बहुत ही मधुर हैं।
उस सज्जन ने कहा-भाई ! इस समय मेरे पास पैसे नहीं हैं ?
फेरीवाले ने कहा-आप पैसे की क्यों चिन्ता करते हैं, आप इस समय प्रेम से गन्ना खाइये और जव भी पैसा हो जाये तब मुझे दे दीजियेगा, मैं इस समय आपसे पैसा नहीं माँग रहा हूँ।
हाँ, तुम्हारा कहना सही है; पर मुझे उधार लेना पसन्द नहीं है क्योंकि जब तक मैं तुम्हें पैसा नहीं दे द्गा तब तक तुम्हें शान्ति नहीं होगी और मेरे मन में भी सदा यही विचार रहेंगे कि पैसा देना है। यदि देने में विलम्ब हुआ तो तुम्हारा तकाजा सदा बना रहेगा और गन्ने की मिठास तकाजे की कड़वाहट में परिवर्तित हो जायेगी।
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