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उसने आत्मविश्वास के साथ कहा कि मैं बैरिस्टरी में सर्वप्रथम आऊँगा। कुछ ही समय में मैं पैसा कमा लूगा और आपको लौटा दूंगा।
देसाई कुछ क्षणों तक चिन्तन करते रहे। फिर उन्होंने मुनीम से कहा-इस युवक को बीस हजार रुपये दे दो। रुपये प्राप्त होने पर युवक ने कहा--- लिखा-पढ़ी कर लीजिये।
देसाई ने पूछा--तुम्हारा नाम क्या है ? उसने कहा----मेरा नाम फिरोज शाह मेहता है।
अच्छा तो मेहता जी ! मैं आपको यह ऋण नहीं, किन्तु छात्रवृत्ति दे रहा हूँ। आप जैसे चोय छात्र हूँढने पर भी नहीं मिल सकते। आज मेरे सद्भान्य है कि आप घर बैठे ही पधार गये। मैं इस सुनहरे अवसर की किस प्रकार उपेक्षा कर सकता हूँ। छात्रवृत्ति के लिए लिखा-पढ़ी का प्रश्न उपस्थित नहीं होता। सर्वप्रथम आप मेरे साथ घर चलिये। आज हम दोनों साथ बैठ कर भोजन करेंगे। भोजन के पश्चात् देसाई ने पाँच हजार रुपये और देते हुए कहा—इनसे अपने वस्त्रादि बना लेना।
फिरोज शाह मेहता विदेश गये। बैरिस्टरी परीक्षा में समुत्तीर्ण होकर अपनी प्रामाणिकता और सत्यनिष्ठा से देश के गौरव में चार चाँद लगाये।
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बोलती तसवीरें
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