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: १४ : छात्रवृत्ति
__श्री हरिप्रसाद देसाई अपनी दुकान से उठे और भोजन के लिए घर की ओर प्रस्थान कर ही रहे थे कि एक युवक ने नमस्कार कर कहा-मैं आपसे किसी विशेष कार्य हेतु बात करना चाहता हूँ।
देसाई चलते हुए रुक गये और पूछा क्या बात है ?
युवक ने कहा-इस वर्ष मैं बी० ए० की परीक्षा में सर्वप्रथम आया हूँ और आज दिन तक भी मैं प्रथम श्रेणी में ही समुत्तीर्ण होता रहा हूँ। मेरी इच्छा बैरिस्टर बनने की है और उसके लिए मैं लन्दन जाना चाहता हूँ। यदि आप बीस हजार रुपये उधार दें तो मेरी कल्पना मूर्त रूप ले सकती है। मैं पुनः अपने देश में आकर आपका पैसा ब्याज सहित दे दूंगा।
देसाई ने पूछा-इतनी बड़ी रकम तुम किस प्रकार चुका सकोगे? छात्रवृत्ति Jain Education InternationaFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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