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बन्दर-व्याघ्र भैया ! चाहे जो कुछ भी हो पर मैं ऐसा निकृष्ट कार्य करने के लिए कभी भी तैयार नहीं हूँ।
व्याघ्र निराश होकर वृक्ष के नीचे ही बैठ गया । बन्दर को नींद आ गई और वह खर्राटे भरने लगा। मनुष्य बन्दर के पास ही बैठा था। व्याघ्र ने देखा कि बन्दर को गहरी नींद आ गई है अतः उसने दूसरी चाल चली—मानव भैया ! मुझे बहुत ही तेज भूख लग रही है । यदि तू बन्दर को नीचे धकेल दे तो मैं तेरा महान् उपकार मान गा।
मानव-छी-छी ! कैसी निकृष्ट बात करते हो तुम, जिस बन्दर ने मेरे प्राणों की रक्षा की उसे धकेलकर तुम मुझे कृतघ्न बनाना चाहते हो। मैं ऐसा पाप कभी नहीं कर सकता।
व्याघ्र ने सोचा-अभी तक इसके सिर पर पाप और पूण्य का नशा सवार है इसलिये इसे ऐसी दवा देनी चाहिए जिससे इसका नशा उतर जाये । व्याघ्र ने धीरे से कहा—मानव ! मैं तेरे हित के लिए कह रहा हूँ कि तू मर जायेगा तो तेरे बाल-बच्चे बिलखबिलखकर रोते रहेंगे, वे जीवन भर तेरी स्मृति में आठ-आठ आँसू बहायेंगे किन्तु बन्दर तो जंगल का
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बोलती तसवीरें
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