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भाट ने नम्रता से निवेदन किया मैं एक बहुत ही गरीब भाट हूँ। किसी तरह इधर-उधर से माँगकर अपना जीवन यापन करता हूँ । पेट बड़ा पापी है । इसके लिए मुझे आपकी सेवा में आना पड़ा है । मैंने पगड़ी उतारकर आपको नमस्कार किया, इसका बहुत बड़ा रहस्य है । यह पगड़ी मुझे महाराणा प्रताप ने दी है । वे अपार कष्टों को झेल रहे हैं किन्तु आपके सम्मुख उन्होंने सिर नहीं झुकाया तो उनकी दी हुई पगड़ी को मैं कैसे झुका सकता हूँ । इसीलिए मैंने पगड़ी उतारकर नमस्कार किया ।
भाट की बात सुनकर अकबर के आश्चर्य का पार न रहा । वह सोचने लगा कि जिसके भाट भी अपने स्वामी के स्वाभिमान और मर्यादा को आँच आने नहीं देते । वस्तुतः वह प्रताप कितना महान् होगा ।
पगड़ी की शान
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