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व्यर्थ का अभिमान
हारु -अल रशीद अपने युग का एक महान् बादशाह था । उसकी उदारता, सहृदयता से जहाँ प्रजा प्रभावित थी वहाँ उसके तेजस्वी व्यक्तित्व से अपराधी काँपते भी थे ।
एक बार एक संन्यासी उसके राज्य में आया । उसके पावन उपदेशों से जन-जन के मन में धर्म का संचार होने लगा । जब संन्यासी की कीर्ति बादशाह ने सुनी तो स्नेह से उसे अपने महल में बुलाया और उससे उपदेश सुनने लगा ।
संन्यासी का उपदेश प्रवाह चल रहा था बादशाह को जोर से प्यास लगी । उसने अपने अनुचर को पानी लाने का संकेत किया । ज्यों ही वह पानी लेकर आया संन्यासी ने हारु रशीद से प्रश्न किया - कल्पना कीजिये,
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बोलती तसवीरें
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