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:५६: गुणों का सन्मान
काजल ने दीपक को उपालम्भ देते हुए कहाबताओ, मैंने क्या अपराध किया है जो तुम्हारे जैसे ज्योतिपुञ्ज का पुत्र होकर भी मुझे काला-कलूटा रूप मिला है ?
दीपक ने कहा-वत्स ! क्या तुझे अपने रूप पर घृणा है । तू तो मेरे से भी अधिक गुणी है । मैं तो केवल नेत्रज्योति वालों को आलोक प्रदान करता हूँ किन्तु तु तो क्षोण-ज्योति वालों को भी फिर से ज्योति देता है। तेरे को आँजने से आँखों में अपूर्व सौन्दर्य और कान्ति आ जाती है। तू जरा अपने गुणों को पहचान । तेरा सर्वत्र सम्मान होगा।
गुणों का सम्मान
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